Monday, 19 October 2020

Research Methodology in Hindi - प्रधान एवं गौण आंकड़े

 

इकाई 6: प्रधान एवं गौण आंकड़े

 

इकाई की रूपरेखा

6.0 परिचय

6.1 इकाई के उद्देश्य

6.2 प्रधान एवं गौण आंकड़ों में अंतर

6.3 प्रधान आंकड़ों की लाभ एवं सीमाएं/ कमियाँ

       6.3.1 प्रधान आंकड़ों के लाभ

       6.3.2 प्रधान आंकड़ों की सीमाएं/ कमियाँ

6.4 गौण आंकड़ों के लाभ एवं सीमाएं

       6.4.1 गौण आंकड़ों के लाभ

       6.4.2 गौण आंकड़ों की कमियाँ

6.5 प्राथमिक एवं गौण आंकड़ों के स्रोत

6.6 प्राथमिक आंकड़े एकत्रित करने की विधियाँ

       6.6.1 प्रश्नावली

       6.6.2 अनुसूची

       6.6.3 निरीक्षण विधि

       6.6.4 साक्षात्कार

6.7 गौण आँकड़ों का एकत्रीकरण

       6.7.1 व्यक्तिगत स्रोत

       6.7.2. संस्थान के आंतरिक स्रोत

       6.7.3 सार्वजनिक स्रोत

6.8 गौण आंकड़ों के चयन की प्रक्रिया

6.9 गौण आंकड़ों के प्रयोग में सावधानियाँ

6.10 सारांश

6.11 मुख्य शब्दावली

6.12 अपनी प्रगति जाँचिए के उत्तर

6.13 अभ्यास हेतु प्रश्न

6.14 आप यह भी पढ़ सकते हैं

6.0 परिचय

शोध में आंकड़ों का बहुत महत्व है। अक्सर गुणात्मक शोध (Qualitative Research) में आंकड़ों प्रयोग बहुत कम होता है परंतु मात्रात्मक शोध (Quantitative Research) पूर्णत: आंकड़ों पर ही आधारित है। आंकड़ों के आधार पर ही शोध के विषय का व्यापकीकरण (generalization) किया जाता है। आंकड़े मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं – प्रधान आंकड़े एवं गौण आंकड़े (Primary and Secondary Data) । प्रधान आंकड़े वे आंकड़े हैं जिन्हे एक शोधकर्ता पहली बार अपने ही शोध के उद्देश्य के लिए एकत्रित करता है। ये आंकड़े शोध कर्ता के लिए एकदम ताजा आंकड़े होते हैं, क्योंकि ये स्वयं शोधकर्ता द्वारा स्वयं अपने लिए एकत्रित किए जाते हैं। ये आंकड़े मुख्य रूप से प्रश्नावली (questionnaire), अनुसूची (schedule), अवलोकन (Observation) एवं साक्षात्कार (Interview) आदि विधियों द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। अक्सर इन आंकड़ों को उस स्थिति में एकत्रित किया जाता है जहां गौण आंकड़ों से शोध की समस्या का हल निकाल पाना कठिन हो। प्रधान आंकड़ों को एकत्रित करने में बहुत समय और धन व्यय करना पड़ता है इसलिए अक्सर इन आंकड़ों को समाहित करने वाले शोध की लागत बढ़ जाती है।

गौण आंकड़े वे आंकड़े हैं जिन्हे शोध कर्ता किसी अन्य स्रोत कसे प्राप्त कर्ता है जैसे- बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज एकत्रित शेयरों के लिए एकत्रित किए गए आंकड़ें, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा एकत्रित किए गए बैंकों के आंकड़ें, अन्य सरकारी विभागों द्वारा एकत्रित एवं प्रकाशित आंकड़े इत्यादि। गौण आंकड़ों को एकत्रित करना प्रधान आंकड़ों की तुलना में सरल है। अक्सर बहुत से संस्थान आजकल अपनी वैबसाइट पर आंकड़ों को प्रकाशित करते हैं जिसे प्रमुख बैंक, स्टॉक एक्सचेंज, बीमा कंपनियाँ इत्यादि। गौण आंकड़ों को एकत्रित करने में अधिक समय एवं धन व्यय नहीं करना पड़ता इसलिए इन पर आधारित शोध की लागत अनावश्यक रूप से नहीं बढ़ती। हालांकि ये आंकड़ेताजा नहीं होते और शोधकर्ता को इन्हे अपने उद्देश्य के लिए संपादित करना पड़ता है। कई बार गौण आंकड़ेपूरी तरह से एक शोध समस्या का समाधान प्रस्तुत नहीं कर पाते और उस स्थिति में शोध कर्ता है प्रधान आंकड़ों के साथ साथ गौण आंकड़ों की भी सहायता भी लेनी पड़ती है। चूंकि गौण आंकड़ों पर शोध कर्ता का कोई नियंत्रण नहीं होता इसलिए इन आंकड़ों के पक्षपात पूर्ण होने की भी संभावना होती है।

6.1 इकाई के उद्देश्य:

इस इकाई के अध्ययन के बाद आप जानेंगे:

  • प्रधान एवं गौण आंकड़ों में अंतर
  • प्रधान एवं गौण आंकड़ों के स्रोत
  • प्रधान एवं गौण आंकड़ों का एकत्रीकरण

 

6.2 प्रधान एवं गौण आंकड़ों में अंतर

प्रधान एवं गौण आकड़ों में कुछ मुख्य अंतर निम्नलिखित है:

अंतर का आधार

प्रधान आंकड़ें (Primary Data)

गौण आंकड़ें (Secondary Data)

मौलिकता

प्रधान आंकड़ेहमेशा मौलिक होते हैं क्योंकि इन्हे स्वयं शोध कर्ता एकत्रित करता है।

गौण आंकड़ें मौलिक नहीं होते क्योंकि ये आंकड़े किसी अन्य व्यक्ति या संस्था द्वारा किसी अन्य या सामान्य उद्देश्य के लिए एकत्रित किए जाते हैं।

एकत्रित किए जाने का समय       

प्रधान आंकड़ों उस समय एकत्रित किए जाते हैं जिस समय एक शोध कर्ता किसी शोध समस्या का समाधान ढूंढ रहा होता है।    

गौण आंकड़ेशोधकर्ता के नियंत्रण के बिना पहले से ही एकत्रित किए गए होते हैं। वर्तमान शोध के लिए शोधकर्ता इन आंकड़ों का प्रयोग करता है।  

उपयुक्तता

ये आंकड़ेवर्तमान शोध के लिए एकदम उपयुक्त होते हैं क्योंकि इन्हे उसी विशेष उद्देश्य से एकत्रित किया जाता है।         

इन आंकड़ों को शोध कर्ता द्वारा संपादित करके अपने उद्देश्य के लिए उपयुक्त बनाया जाता है।

एकत्र करने की विधियाँ

सर्वेक्षण विधि जिसमें मुख्यत: प्रश्नावली, साक्षात्कार आदि का प्रयोग होता है।      

इसमें आंकड़ेशोध कर्ता आपने कार्यक्षेत्र पर ही इंटरनेट/ प्रकाशित बुलेटिन आदि के मध्यम से प्राप्त कर लेता है।

सावधानी

प्रधान आंकड़ों को एकत्रित करते समय बहुत अधिक सावधानी की आवश्यकता नहीं है।

गौण आंकड़ों को एकत्रित करते समय बहुत अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है। शोध कर्ता को यह विशेष रूप से ध्यान में रखना होता है कि आंकड़े उसकी शोध समस्या एवं उद्देश्य के लिए उपयुक्त हैं अथवा नहीं।

लागत एवं धन

प्रधान आंकड़ों को एकत्रित करने में अधिक समय एवं धन खर्च होता है।   

गौण आंकड़ों को एकत्रित करने में कम समय एवं धन खर्च होता है।

गोपनीयता

प्रधान आंकड़ों की गोपनीयता बनी रहती है।

गौण आंकड़ेअक्सर गोपनीय नहीं होते।      

नयापन एवं उपयोगिता

प्रधान आंकड़े एकदम नए होते हैं, इसलिए वर्तमान शोध समस्या के लिए इनकी उपयोगिता बनी रहती है।   

गौण आंकड़े कई बार इतने पुराने हो चुके होते हैं की वो वर्तमान शोध समस्या के विषय से मेल तो खाते हैं परंतु उपयोगी नहीं होते।

 

6.3 प्रधान आंकड़ों की लाभ एवं सीमाएं/ कमियाँ:

6.3.1 प्रधान आंकड़ों के लाभ:

1. उपयुक्तता (suitability): ये आंकड़ेशोधकर्ता अपनी शोध समस्या एवं शोध के उद्देश्यों के अनुरूप एकत्रित करता है अत: ये सटीक एवं उपयुक्त होते हैं। शोध समस्या या उद्देश्यों से मेल कराने के लिए इनके सम्पादन की आवश्यकता नहीं होती।

2.मौलिकता (Originality) प्रधान आंकड़े मौलिक होते हैं क्योंकि इन्हे पहली बार एकत्रित किया जाता है और उनका प्रयोग भी उन्हे एकत्रित करने वाला शोध कर्ता पहली बार ही करता है।

3. सटीकता (Accuracy) : प्रधान आंकड़ों में सटीकता होती है। क्योंकि उनको एकत्रित करने का उद्देश्य पहले से ही स्पष्ट होता है।

4. अपक्षपातपूर्ण (Unbiased): ये आंकड़ें एक शोधकर्ता स्वयं एकत्रित करता है जिससे इनके पक्षपात पूर्ण होने की संभावना बहुत कम हो जाती है।

6.3.2 प्रधान आंकड़ों की सीमाएं/ कमियाँ:

1. अधिक समय एवं धन की आवश्यकता: प्रधान आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए शोधकर्ता को सर्वेक्षण विधि का सहारा लेना पड़ता है जिसमें बहुत अधिक समय एवं धन खर्च होता है।

2. प्रशिक्षण की आवश्यकता: प्रधान आंकड़ों एकत्रित करने के लिए नियुक्त किए गए कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना अनिवार्य होता है जिससे आंकड़ों को एकत्रित करने में होने वाला व्यय बढ़ जाता है।

3. तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता: प्रधान आंकड़ें एकत्रित करने एक शोधकर्ता को के लिए प्रश्नावली आदि की आवश्यकता होती है, जिसे तैयार करने के लिए शोध का तकनीकी ज्ञान बहुत आवश्यक है।

4. उत्तर देने वाले की अरुचि: प्रधान आंकड़ें अक्सर सामान्य जनता से एकत्रित किए जाते हैं। यह एक सामान्य मानव व्यवहार है कि प्रश्नावली को भरने में हर व्यक्ति रुचि नहीं लेता। इससे आंकड़े एकत्रित करने में शोध कर्ता को कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

5. गलत सूचना: अक्सर प्रश्नावली एवं अनुसूची में सूचना देने वाली व्यक्ति जल्दी में या जानबूझकर शोधकर्ता को गलत जानकारी दे सकता है।

6.4 गौण आंकड़ों के लाभ एवं सीमाएं:  

6.4.1 गौण आंकड़ों के लाभ:

1. कम समय एवं धन की आवश्यकता: गौण आंकड़ें पहले से ही एकत्रित किए हुए होते हैं और उन्हे शोधकर्ता प्रकाशित स्रोतों से अपने उद्देश्य के लिए प्राप्त कर्ता है। इन्हे एकत्रित करने के लिए सर्वेक्षण विधि का सहारा नहीं लेना पड़ता है जिसमें बहुत से समय एवं धन की बचत होती है।

2. प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं: सर्वेक्षण विधि न होने के कारण शोध कर्ता को आंकड़ें एकत्रित करने के लिए एक बड़े दल की आशयकता नहीं होती जिससे उनके वेतन एवं प्रशिक्षण पर होने वाला खर्च बच जाता है।

3. तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता: गौण आंकड़े एकत्रित करने के लिए प्रश्नावली आदि की आवश्यकता नहीं होती है। जिससे शोधकर्ता प्रश्नावली निर्माण आदि में प्रयोग होने वाले तकनीकी ज्ञान के बिना भी आंकड़े एकत्रित कर सकता है।

4. उत्तर देने वाले के पक्षपात गलत सूचना से मुक्त: हालांकि किन्ही अन्य कारणों से गौण आंकड़ें पक्षपात पूर्ण हो सकते हैं परंतु एक शोधकर्ता को स्वयं उत्तर देने वाले की अरुचि, जल्दबाज़ी या पक्षपात पूर्ण व्यवहार का नुकसान नहीं उठाना पड़ता।

6.4.2 गौण आंकड़ों की कमियाँ:

1. नएपन का अभाव: गौण आंकड़ें पहले से ही इकट्ठे किए गए होते हैं। कई बार ये आंकड़ें इतने पुराने हो जाते हैं कि वर्तमान शोध समस्या के लिए उपयुक्त नहीं होते।

2. पक्षपातपूर्ण (Biased): शोधकर्ता गौण आंकड़ों की निष्पक्षता पर पूरी तरह से विश्वास नहीं कर सकता क्योंकि इनको जिन परिस्थितियों एवं जिस वातावरण में इकठ्ठा किया गया होगा उस पर शोधकर्ता का कोई नियंत्रण नहीं होगा।

3. उपयुक्तता एवं सटीकता: इन आंकड़ों को शोधकर्ता द्वारा उपयुक्त बनाया जाता है क्योंकि यह आवश्यक नहीं है की वर्तमान शोध समस्या और गौण आंकड़ों का उद्देश्य एक ही हो जब उन्हे एकत्रित किया गया हो।

4. उपलब्ध्ता (Availability): हर विषय की शोध समस्या के लिए गौण आंकड़ों का उपलब्ध होना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है। गौण आंकड़ों के आंकड़ाकोश में यह आवश्यक नहीं की हर विषय एवं शोध के लिए नवीनतम आंकड़ें उपलब्ध हों।

6.5 प्राथमिक एवं गौण आंकड़ों के स्रोत:

प्राथमिक आंकड़ें मुख्य रूप से आम जनता से एकत्रित किए जाते हैं। ये आंकड़ें किसी भी शोध समस्या से संबन्धित हो सकते हैं। आंकड़ों को एकत्रीकरण के लिए उत्तर देने वालों (respondents) चयन शोध समस्या के विषय के आधार पर किया जाता है। उदाहरणत: यदि शोध समस्या है – “दिल्ली मेट्रो में यात्रा करने वाले व्यक्तियों की समस्याओं का अध्ययन” तो इस विषय के लिए उत्तर देने वाले व्यक्ति वे होंगे जो अधिकांशत: अपने कार्यालय में जाने के लिए दिल्ली मेट्रो का चयन करते हैं। अथवा/ और वो विद्यार्थी होंगे जो अपने घर से विद्यालय अथवा महाविद्यालय जाने के लिए मेट्रो से यात्रा करते हैं। इस प्रकार एक प्रश्नावली या अनुसूची बनाकर उनसे आंकड़ें एकत्रित किए जा सकते हैं।

गौण आंकड़ों के एकत्रीकरण की विधि इससे पूर्णतया भिन्न है। विषय के आधार पर गौण आंकड़ों के अलग-अलग स्रोत हो सकते हैं। यदि हम उपरोक्त शोध समस्या का उदाहरण लें जिसमें हमें मेट्रो में यात्रा करने वालों की समस्याओं के विषय में जानकारी प्राप्त करनी है तो हम ये आंकड़ें दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन से ले सकते हैं अथवा किसी ऐसी एजेंसी से ले सकते हैं जो दिल्ली मेट्रो में विज्ञापन आदि की संयोजक है और उसने यात्रियों पर कोई समग्र सर्वेक्षण किया हुआ है। अर्थात गौण आंकड़े प्राप्त करने के लिए हम अपनी शोध समस्या का विस्तृत अध्ययन करते हैं और फिर उन स्रोतों का चयन करते हैं जहां पर हमें अपनी शोध समस्या के हल के लिए नवीनतम, सटीक करके एवं पर्याप्त आंकड़ें प्राप्त हो सकते हैं।

अपनी प्रगति जाँचिए

  1. प्रधान एवं गौण आंकड़ों में मुख्य अंतर क्या हैं।
  2. प्रधान आंकड़ों की मुख्य कमियाँ क्या हैं।

 

 
 

 

 

 


6.6 प्राथमिक आंकड़े एकत्रित करने की विधियाँ:

6.6.1 प्रश्नावली:

प्रश्नावली प्राथमिक आंकड़े एकत्रित करने की सबसे लोकप्रिय विधि है। प्रश्नावली ऐसे प्रश्नों का समूह होता है जिन्हे किसी शोध समस्या के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए तैयार किया जाता है। इन प्रश्नों के माध्यम से उत्तर देने वालों से आंकड़ें इकट्ठे किए जाते हैं। एक अच्छी प्रश्नावली शोधकर्ता के कार्य को सरल कर देती हैं, क्योंकि प्रश्नों की संख्या, उनकी भाषा, प्रश्नावली की साज सज्जा (layout) इत्यादि उत्तर देने वाले पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डालते हैं इसीलिए एक प्रभावशाली प्रश्नावली आंकड़ों के एकत्रीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

एक प्रभावशाली प्रश्नावली की विशेषताएँ:

1. प्रश्नों की उचित संख्या/ आकार: एक प्रभावशाली प्रश्नावली सम्पूर्ण भी होती है और संक्षिप्त भी। प्रश्नवाली में प्रश्नों की संख्या उतनी ही होनी चाहिए जितने प्रश्न शोध उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक हैं। प्रश्नावली का आकार भी सीमित होना चाहिए क्योंकि उत्तर देने वाला व्यक्ति बड़ी प्रश्नावली को बोझ महसूस करता है और उसे भरने में अरुचि दिखाता है।

2. भाषा: प्रश्नावली में प्रश्नों की भाषा सरल होनी चाहिए जिससे उत्तर देने वाला व्यक्ति उन्हे ठीक से समझकर सही उत्तर दे सके। कठिन शब्दों के साथ कोष्ठक में उनका अर्थ भी लिखा जा सकता है। भाषा का चयन उत्तर देने वाले की शैक्षणिक योग्यता, उसके क्षेत्र की लोकप्रिय आदि के आधार पर किया जाना चाहिए।

3. प्रश्नों के प्रकार: प्रश्न कई प्रकार के होते हैं प्रश्नावली में उचित प्रश्न शोधकर्ता कोई सही जानकारी प्रदान करने में सहायता करता है। बहुत से प्रश्नों के उत्तर केवल हाँ या नहीं में नहीं हो सकते, शोधकरता कोई कई बार एक ही प्रश्न के लिए कई विकल्प देने होते हैं।

4. व्यक्तिगत प्रश्न: व्यक्तिगत प्रश्न जैसे – आय – व्यय, उम्र आदि प्रश्नों का सही उत्तर मिलना अक्सर कठिन होता है। ऐसे प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए हम उत्तर देने वाले को अधिकतम एवं न्यूनतम सीमा प्रदान करते हैं जिससे उसे प्रत्यक्ष रूप से अपनी उम्र या आय नहीं बतानी होती और वह सहज महसूस करता है।

5. भारी प्रश्न (loading questions): भारी प्रश्न वे प्रश्न हैं जिनका उत्तर देने के लिए शोध करता को बहुत समय एवं प्रयास लगाना पड़ता है और काफी गणना करनी पड़ती है। जैसे – आप एक वर्ष में कितने लीटर चाय पीते हैं? अथवा आप एक वर्ष में कितनी सिगरेट पीते हैं? इत्यादि। ऐसे प्रश्न यदि शोध उद्देश्यों की दृष्टि के लिए आवश्यक हों तो उन्हे सरल करके डालना चाहिए। जैसे – आप एक दिन में कितने कप चाय पीते हैं (एक वर्ष के लिए चाय की गणना शोध करता को स्वयं करनी चाहिए)।

6. दो धड़ों वाले प्रश्न (double barreled questions): प्रश्नवाली में ऐसे प्रश्नों से हमेशा बचना चाहिए जैसे – आप सुबह नाश्ते में चाय या कॉफी लेते हैं? मान लीजिए इसका उत्तर हाँ है तो शोध कर्ता क्या समझेगा कि यह हाँ चाय के लिए है या कॉफी के लिए। ऐसे प्रश्नों को दो अलग अलग प्रश्नों में विभाजित करना उचित होता है।

प्रश्नावली के प्रकार:

1. संरचित प्रश्नावली एवं असंरचित प्रश्नावली (Structured and Unstructured questionnaire): संरचित प्रश्नावली में प्रश्नों का क्रम, संख्या एवं विकल्प पूर्व निर्धारित होते हैं एवं एक उत्तरदाता को उसी क्रम में उन्ही विकल्पों के लिए उत्तर देना होता है जबकि असंरचित प्रश्नावली का उपयोग प्रायः साक्षात्कार एवं अनुसूची आदि विधियों में किया जा सकता है जहाँ प्रश्नों की क्रम संख्या एवं विकल्प आदि का पूर्व निर्धारित होना अनिवार्य नहीं है।

2.  खुली एवं बंद प्रश्नावली: (Open and closed questionnaire) खुली प्रश्नावली में शोधकर्ता खुले प्रश्न देता है और उत्तरदाता को अपनी बात खुलकर कहने का पूरा अवसर देता है। उदाहरणत:

प्रश्न: आपके विचार में घरेलू हिंसा का क्या मुख्य कारण है?

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बंद प्रश्नावली प्रश्नावली का सबसे प्रचलित रूप है। इसमें बहुवैकल्पिक प्रश्न दिए होते हैं और उत्तरदाता को उन में एक सबसे सटीक विकल्प चुनना होता है। कई बार प्रश्न “जाँच सूची” (checklist) के रूप में होते हैं। ऐसे प्रश्नों में उत्तरदाता एक से अधिक विकल्पों का चुनाव भी कर सकता है।

उदाहरण:

प्रश्न: आपके विचार में घरेलू हिंसा का मुख्य कारण क्या है?

क) पुरुष प्रधान समाज          ख) शराब/ नशा

ग) निर्धनता                  घ) अशिक्षा

 

बंद एवं खुली प्रश्नावली के उपरोक्त प्रकारों के अतिरिक्त एक ऐसी मिश्रित प्रश्नावली भी हो सकती हैं जो बंद भी हो और खुली भी। ऐसी प्रश्नावली आधुनिक सामाजिक एवं व्यावसायिक शोध में बहुत प्रचलित है। इसमें दिए गए प्रश्न में सभी मुख्य विकल्पों को तो दिया ही जाता है और साथ में उत्तरदाता को यह छूट भी दी जाती है कि वह उन विकल्पों के अतिरिक्त कोई अन्य उत्तर भी देना चाहता है तो दे सकता है।  

 

उदाहरण:

प्रश्न: आपके विचार में घरेलू हिंसा का मुख्य कारण क्या है?

क) पुरुष प्रधान समाज          ख) शराब/ नशा

ग) निर्धनता                  घ) अशिक्षा

 

अन्य कोई कारण कृपया लिखें....................................................................

 

चित्रात्मक प्रश्नावली (Pictorial questionnaire): चित्रात्मक प्रश्नावली का उपयोग अक्सर तीन उद्देश्यों के लिए किया जाता है। पहला – जब किसी उत्तरदाता से चित्रों की पहचान करवाकर उत्तर प्राप्त करने हों। उदाहरणत: यदि विपणन विषय में ब्रांडिंग पर शोध करने वाला एक शोधकर्ता ब्रांड रिकॉल के लिए उत्तरदाता को केवल ब्रण्ड्स के चित्र वाली प्रश्नावली देता है और उसे चित्र के नीचे ब्रांड को पहचानकर उसका सही नाम लिखने के लिए कहता है। दूसरा – जब प्रश्न किसी तकनीकी विषय पर हों। ऐसे में शब्दों के साथ उस वस्तु या उत्पाद का चित्र देकर प्रश्नावली को सरल बनाया जा सकता है। तीसरा- जब प्रश्नावली के उत्तरदाता अशिक्षित या अल्पशिक्षित लोग हों अथवा बच्चों हो।

मिश्रित प्रश्नावली (Mixed questionnaire) : मिश्रित प्रश्नावली में बंद, खुले एवं चित्रात्मक सभी प्रकार के प्रश्न हो सकते हैं। अक्सर मिश्रित प्रश्नावली में अधिकांशत: प्रश्न बंद एवं खुले प्रश्न होते हैं। आवश्यकता अनुसार चित्रात्मक प्रश्नों का भी प्रयोग किया जा सकता है। ऐसी प्रश्नावली उत्तरदाता को उत्तर देने के लिए सम्पूर्ण छूट प्रदान करती है। ऐसी प्रश्नावली का प्रयोग करके शोधकर्ता आश्वस्त हो सकता है क्योंकि ऐसी प्रश्नावली शोध कर्ता को अधिक विकल्प एवं छूट प्रदान करती है।

6.6.2 अनुसूची (schedule):

अनुसूची भी प्रश्नावली की तरह ही प्रश्नों की एक सारणी है। प्रश्नावली व अनुसूची में आधारभूत अंतर यह है कि प्रश्नावली में प्रश्नों के उत्तर स्वयं उत्तरदायी भरता है परंतु अनुसूची में यह कार्य शोधकर्ता करता है। यह एक आधारभूत अंतर ही अनुसूची को पूरी तरह प्रश्नावली से अलग कर देता है। प्रश्नावली एवं अनुसूची में कुछ मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:

 अंतर का आधार

प्रश्नावली

अनुसूची

प्रश्नों के उत्तर भरने वाला व्यक्ति

प्रश्नावली में उत्तर देने वाला व्यक्ति स्वयं ही सही विकल्पों पर निशान लगाता है अथवा अपने उत्तर लिखता है

अनुसूची में आंकड़े एकत्रित करने वाला व्यक्ति स्वयं विकल्पों पर निशान लगाता है या अनुसूची में जानकारी लिखता है।

प्रशिक्षण

इसमें आंकड़े एकत्रित करने वाले व्यक्ति को अधिक प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। कई बार प्रश्नावली पत्र ई मेल द्वारा भेजकर भी सूचना प्राप्त की जा सकती है।

इसमें उस व्यक्ति को प्रशिक्षण दिया जाना अनिवार्य है जो अनुसूची को लेकर उत्तर देने वाले से संपर्क कर्ता है, क्योंकि अनुसूची स्वयं आंकड़े एकत्रित करने वाले द्वारा भरी जाती है।

समय एवं धन

चूंकि प्रश्नावली को पत्र आदि से भी भरवाया जा सकता है इसके लिए आंकड़े इकठ्ठा करने वाले एवं उत्तरदाता का आमने-सामने होना अनिवार्य नहीं है। इसलिए इसमें समय एवं धन कम खर्च होता है।         

अनुसूची के भरने के लिए आंकड़े इकट्ठे करने वाले एवं उत्तर देने वाले का आमने सामने होना आवश्यक है इसलिए इसमें अधिक समय व धन खर्च होता है।

कार्यालय शोध बनाम क्षेत्र सर्वेक्षण

यदि सभी प्रश्नावलियाँ ई-मेल अथवा पत्र – व्यवहार के माध्यम से भरवाई जाएँ तो आंकड़ें कार्यालय में बैठकर भी इकट्ठे किए जा सकते हैं।

इसमें क्षेत्र सर्वेक्षण अनिवार्य है

माध्यम

प्रश्नावली को व्यक्तिगत रूप से, पत्र व्यवहार अथवा ई-मेल द्वारा भी भेजा जा सकता है।

अनुसूची के माध्यम से आंकड़े केवल व्यक्तिगत रूप से ही एकत्रित किए जा सकते हैं।  

सूचना की मात्रा

प्रश्नावली सीमित सीमा तक ही आंकड़े एकत्रित कर पाती है क्योंकि बहुत बड़ी प्रश्नावली उत्तर देने वाले को अरुचिकर लगती है।

अनुसूची के माध्यम से विस्तृत जानकारी एकत्रित की जा सकती है।

साक्षरता

प्रश्नावली के लिए उत्तर देने वाले का शिक्षित होना होना अनिवार्य

अनुसूची के लिए जानकारी देने वाले व्यक्ति का शिक्षित होना अनिवार्य नहीं है।

भाषा के प्रयोग में सावधानी

प्रश्नावली में शोध सहायक का कार्य लगभग न के बराबर होता है इसलिए प्रश्नावली में भाषा के प्रयोग में अधिक सावधानी बरतना आवश्यक है।

अनुसूची में आंकड़े एकत्रित करने वाले व्यक्ति द्वारा ही प्रश्न पूछे जाते हैं, वह अनुसूची की भाषा को तोड़-मरोड़ कर उत्तर देने वाले के स्तर तक ला सकता है। इसलिए इसमें भाषा पर बहुत अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता नहीं है। 

सहायता

प्रशनावली में प्रश्न को समझने में आंकड़े एकत्रित करने वाला व्यक्ति उत्तर देने वाले व्यक्ति की सहायता नहीं कर सकता

अनूसूची में उत्तर देने वाले व्यक्ति को आंकड़ें एकत्रित करने वाले से हर प्रश्न को समझने में सहायता मिलती है।

 

अपनी प्रगति जाँचिए

3. अनुसूची को परिभाषित कीजिए। 

4. मिश्रित प्रश्नावली से आपका क्या अभिप्राय है।

 
 

 

 

 


6.6.3 अवलोकन विधि (Observation Method): इस विधि में शोधकर्ता किसी भी व्यक्ति या घटना को देखकर आंकड़े एकत्रित करता है। जैसे कोई शोधकर्ता यह जानना चाहता है कि आज के युवा वर्ग की किन पुस्तकों में अधिक रुचि है तो वह किसी पुस्तक मेले में जाकर किसी एक या एक से अधिक दुकानों पर युवा ग्राहकों का अवलोकन करके इस विषय पर आंकड़े एकत्रित कर सकता है। अवलोकन विधि से आंकड़ें देखकर या सुनकर एकत्रित किए जाते हैं। शोधकर्ता युवा ग्राहकों का कई स्थानों पर निरीक्षण कर सकता है जैसे:

1. उस समय जब वे दुकान में आकार विक्रेता से किसी विशेष पुस्तक या पुस्तक श्रेणी के विषय में पूछते हैं।

2. उस समय जब वे किसे दुकान में पुस्तकों का अवलोकन कर रहे हों।

3. बिलिंग के समय जब वे पुस्तकें खरीदकर उनका भुगतान कर रहे हों।

इनमें पहले और तीसरे बिन्दु अधिक महत्वपूर्ण है, जिससे उनकी वास्तविक रुचि का पता चलता है। आजकल तकनीक के युग में निरीक्षण का कार्य सीसीटीवी कैमरों एवं अन्य तकनीकी माध्यमों से भी किया जा रहा है, इससे गलती होने की संभावना बहुत कम हो जाती है।

1. पक्षपात रहित आँकड़े: यदि शोधकर्ता पूरी ईमानदारी से काम करे तो वह अवलोकन विधि के प्रयोग से पक्षपात रहित आँकड़े एकत्रित कर सकता है क्योंकि इसमें उत्तर देने वाले के पास कुछ भी छिपाने या झूठ बोलने का विकल्प नहीं रहता।

2. तकनीक का उपयोग: इस विधि में सीसीटीवी कैमरों, सेंसरों आदि का उपयोग किया जा सकता है। जिससे न केवल आंकड़े पक्षपात रहित होते हैं अपितु उन्हे एकत्रित करने के लिए किसी के सहायता भी नहीं लेनी पड़ती और उन्हे प्रशिक्षित करने खर्च भी बच जाता है।

3. आंकड़े प्राप्त करने में सरलता: अन्य विधियों की तुलना में इस विधि से आंकड़ें एकत्रित करना अपेक्षाकृत सरल है। प्रश्नावली में अक्सर उत्तर देने वाले व्यक्ति या तो रुचि ही नहीं लेते या फिर आधे-अधूरे उत्तर देते हैं। इसी प्रकार अनुसोची के लिए भी उत्तर देने वाले व्यक्ति को बहुत समय निकालना पड़ता है इसलिए इन दोनों विधियों में सूचना सूचना प्राप्ति की दर (response rate) बहुत कम हो जाती है। निरीक्षण विधि में शोधकर्ता को इन समस्याओं से नहीं जूझना पड़ता।

अवलोकन विधि की कमियाँ:

1. शोधकर्ता द्वारा पक्षपात की संभावना: इस विधि में आंकड़ों का अवलोकन पूर्णत: शोधकर्ता के नियंत्रण में होता है ऐसी स्थिति में यदि शोधकर्ता द्वारा पक्षपात की संभावना रहती है।

2. समय एवं धन का अधिक खर्च: इस विधि में आंकड़ों के एकत्रीकरण के लिए शोधकर्ता को या तो व्यक्तिगत रूप में समय देना पड़ता है या उसे ऐसे सहायकों की नियुक्ति करनी पड़ती है और उन्हे प्रशिक्षण देने पड़ता है जो उसके लिए आंकड़े एकत्रित कर सके दोनों ही स्थितियों में अत्यधिक समय एवं धन खर्च होता है। हालांकि निरीक्षण के लिए तकनीक के उपयोग से समय की बचत तो हो जाती है परंतु महँगे उपकरणों के कारण शोध की लागत बढ़ जाती है।

3. अवलोकन किए जाने वाले व्यक्ति की ओर से पक्षपात: इस विधि में यदि उस व्यक्ति को जिसका निरीक्षण किया जा रहा है, इस बात का पता लग जाता है तो वह अपने वास्तविक रूप से बदलकर सामाजिक रूप से स्वीकार किए जाने वाले रूप में आ जाएगा” जिससे उसी वास्तविक रुचियों एवं क्रियाकलापों का पता नहीं लगेगा और शोध पक्षपातपूर्ण हो जाएगा।

4. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का हनन: बहुत से ऐसे विषय जो संवेदनशील होते हैं या जिनमें व्यक्तिगत जानकारी की आवश्यकता होती है वहाँ अवलोकन विधि का प्रयोग व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का हनन माना जाता है। उन स्थितियों में यह विधि पूर्णत: नैतिक नहीं मानी जा सकती।

5. विशेष अनुमति की आवश्यकता: अवलोकन विधि के प्रयोग के लिए शोधकर्ता या उसके दल के किसी भी व्यक्ति को किसी संस्थान (मॉल, दुकान, कार्यालय आदि) में बैठना पड़ता है। इसके लिए उसे उस संस्थान के मालिक से अनुमति लेनी पड़ती है और कोई भी यह नहीं चाहता की उसके ग्राहकों के विषय में कोई जानकारी प्राप्त करे, इसलिए ऐसे में कई बार आंकड़े एकत्रित करने में बहुत कठिनाई होती है।

6.6.4 साक्षात्कार:

साक्षात्कार प्राथमिक आंकड़ों के एकत्रीकरण की वह विधि है जिसमें शोधकर्ता या शोध दल का कोई एक सदस्य साक्षात्कारकर्ता के रूप में उत्तरदाता से आमने-सामने मुलाक़ात के माध्यम से जानकारी एकत्रित करता है।

दीपक चावला एवं नीना सोंधी के अनुसार, “व्यक्तिगत साक्षात्कार एवं उत्तरदाता के बीच एक से एक का परस्पर संपर्क (one-to-one interaction) होता है। इस संवाद का उद्देश्य शोध से संबन्धित होता है और इसकी सीमा पूरी तरह संचरित से लेकर पूरी तरह असंचरित तक हो सकती है।

साक्षत्कार के प्रकार: साक्षात्कार कई प्रकार का होता है। शोध समस्या, उद्देश्यों, शोधकर्ता की क्षमता, उत्तरदाता आदि के आधार पर साक्षत्कार के प्रकार का चयन किया जाता है। साक्षात्कार के कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

I संरचना के आधार पर:

1. संरचित अथवा निर्देशात्मक

2. अर्ध संरचित अथवा अर्ध निर्देशात्मक

3. असंरचित अथवा गैर निर्देशात्मक 

 

II साक्षात्कार स्थान के आधार पर:

1. उत्तरदाता के स्थान पर

2. साक्षात्कारकर्ता के स्थान पर

3. किसी अन्य स्थान पर

III माध्यम के आधार पर

 

1. व्यक्तिगत साक्षात्कार

2. टेलीफ़ोन साक्षात्कार

3. कम्यूटर की सहायता से साक्षात्कार

 

IV  सूचना दर्ज करने के आधार पर

 

1. याददाश्त पर आधारित साक्षात्कार

2. पृष्ठ पर दर्ज किए जाने वाले साक्षात्कार

3. दृश्य – श्रव्य उपकरणों वाले साक्षात्कार

 

संरचित अथवा निर्देशात्मक: संरचित साक्षात्कार वह साक्षात्कार होता है जिसमें प्रश्न एवं उनका क्रम पूर्व निर्धारित होता है। हालांकि इसमें प्रश्नावली की तरह विकल्पों का पैमाना निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं होती, केवल प्रश्नों का क्रम एवं उनकी भाषा निर्धारित करना पर्याप्त होता है। संरचित साक्षात्कार आंकड़ों के संकलन के समय (साक्षात्कार के समय) साक्षात्कारकर्ता को इधर उधर भटकने नहीं देता परंतु ऐसा साक्षात्कार विवरणात्मक शोध आदि के लिए अधिक उपयुक्त होता है जहाँ चारों का चयन पहले से ही हो चुका हो एवं शोधकर्ता उन चरों की विशेषताओं का अध्ययन करना चाहता हो।

अर्ध संरचित अथवा अर्ध निर्देशात्मक साक्षात्कार: ऐसे साक्षात्कार में कुछ प्रश्न एवं कुछ प्रश्नों का क्रम निश्चित होता है। कुछ प्रश्न निश्चित रूप से उत्तरदाता से पूछे ही जाते। ये वे प्रश्न होते हैं जिनके बिना शोधकर्ता का शोध उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। कुछ प्रश्नों का क्रम भी पूर्व निर्धारित होता है। इसके अतिरिक्त ऐसे साक्षात्कार में इतनी लोचशीलता होती है कि साक्षातकारकर्ता कुछ ऐसे प्रश्न भी पूछ सकता है और जो उसने तुरंत निर्धारित किए हों। हाँ, निश्चित ही वे सभी प्रश्न शोध उद्देश्यों एवं शोध समस्या से कुछ संबंध अवश्य रखते होंगे।   

असंरचित अथवा गैर निर्देशात्मक: असंरचित साक्षात्कार में प्रश्नों का क्रम एवं संख्या आदि कुछ भी निश्चित नहीं होता। इसमे शोधकर्ता अपने उद्देश्य के अनुसार उत्तरदाता से जानकारी लेकर लिखता जाता है। साक्षात्कारकर्ता अपने अगले प्रश्न को पहले प्रश्न का उत्तर के आधार पर बादल भी सकता है। ऐसी प्रश्नावली का प्रयोग प्राय: अन्वेषात्मक शोध में अधिक किया जाता है। ऐसी प्रश्नावली में साक्षात्कारकर्ता किसी भी समय कोई भी प्रश्न किसी भी क्रम में पूछ सकता है, जिसके लिए उसका उद्देश्य उसे प्रेरित कर रहा हो।

II साक्षात्कार स्थान के आधार पर: साक्षात्कार स्थान से अभिप्राय उस स्थान से जहां साक्षात्कार कर्ता एवं उत्तरदाता आपस में मिलते हैं और

1. उत्तरदाता के स्थान पर: समाज विज्ञान शोध के लिए मुख्यत: साक्षात्कारकर्ता को उत्तरदाता के स्थान पर जाकर ही साक्षात्कार लेना पड़ता है। इसमें साक्षात्कारकर्ता उत्तरदाता के घर पर या कार्यालय में जाकर साक्षात्कार लेता है। उदाहरणत: विद्यार्थियों के लिए स्मार्ट कंटेन्ट बनाने वाली कंपनियाँ अक्सर विद्यालयों/ महाविद्यालयों में जाकर अध्यापकों का साक्षात्कार लेती हैं ताकि वो विद्यार्थियों की आवश्यकताओं के अनुरूप सामाग्री तैयार कर सकें।

2. साक्षात्कारकर्ता के स्थान पर: हालांकि प्रथम दृष्टि में ऐसा लगता है कि कोई उत्तरदाता साक्षात्कारकर्ता को उसके स्थान पर जाकर साक्षात्कार क्यों देगा जबकि उसे इससे कोई सीधा लाभ नहीं है। वास्तव में ऐसे साक्षात्कार उस समय होता है जब एक उत्तरदाता किस अन्य कार्य हेतु शोधकर्ता अथवा साक्षात्कारकर्ता के संस्थान पर जाता है। ऐसा साक्षात्कार एक व्यवसायी अपने ग्राहक से ले सकता है। इसी प्रकार एक प्रशिक्षण केंद्र में पढ़ रहे विद्यार्थियों से उनका प्रशिक्षण केंद्र प्रबंधक अपने प्रशिक्षकों के ज्ञान एवं प्रशिक्षण कौशल के विषय में प्रतिपुष्ठी (feedback) के रूप में उनका साक्षातकार लेकर उन्हें आंकड़ों एकत्रित कर सकता है।

 

3. किसी अन्य स्थान पर: साक्षात्कार करने के लिए साक्षात्कारकर्ता कोई ऐसा स्थान भी चुन सकता है जहाँ उसे अपने शोध उद्देश्य की पूर्ति के लिए सही उत्तरदाताओं के चुने जाने की संभावना हो। बस यात्रियों से उनकी सुविधा या असुविधा के विषय में जानने के लिए कोई समाचार चैनल बस-अड्डे पर बस का इंतज़ार कर रहे यात्रियों से अनौपचारिक साक्षात्कार कर सकता है। कई बार मंदिरों या सार्वजनिक स्थानों पर स्वास्थ्य लाभ देने वाली कंपनियाँ लोगों से उनके स्वस्थ्य के विषय में साक्षात्कार करती हैं। किसी नए उत्पाद पर विचार कर रही कंपनियाँ भी किसी मॉल या अन्य सार्वजनिक स्थान को ही साक्षात्कार के लिए चुनती हैं। हालांकि इस प्रकार का साक्षात्कार बहुत लंबा नहीं हो सकता और इससे सीमित जानकारी ही प्राप्त की जा सकती है।

 

III माध्यम के आधार पर

 

1. व्यक्तिगत साक्षात्कार (Personal Interview): व्यक्तिगत साक्षात्कार साक्षातकारकर्ता एवं उत्तरदाता का आमने-सामने मिलन है। इसमें साक्षात्कारकर्ता उत्तरदाता से स्वयं मिलकर सूचना एकत्रित करता है। व्यक्तिगत साक्षात्कार का लाभ यह है कि इसमें साक्षात्कारकर्ता उत्तरदाता को अच्छी प्रकार से समझ सकता है, उत्तर देते हुए उसकी भाव-भंगिमाओं पर नजर रख सकता है। उसकी वेश भूषा, रहन सहन आदि से उसके द्वारा दी गई सूचना मिलान कर उसकी प्रामाणिकता का अनुमान लगा सकता है। हालांकि व्यक्तिगत साक्षात्कार में अक्सर अधिक समय एवं धन खर्च करना पड़ता है। इसके लिए समय भी पूर्व निर्धारित होता है अत: इसमें लोचशीलता का भी अभाव होता है।

 

2. दूरभाष से साक्षात्कार (Telephonic Interview) : कई बार उत्तरदाता एवं साक्षात्कारकर्ता एक दूसरे से बहुत दूर होते हैं। अथवा साक्षात्कारकर्ता इतना व्यस्त होता है कि वह स्वयं जाकर उत्तरदाता से आमने सामने नहीं मिल सकता। ऐसी स्थिति में दूरभाष से साक्षात्कार एक बहुत ही उपयोगी माध्यम सिद्ध होता है। जहाँ एक ओर इससे समय एवं धन की बचत होती है वहीं दूसरी ओर इसमें समय की लोचशीलता भी विद्यमान रहती है। परंतु दूरभाष से साक्षत्कार की कुछ सीमाएं भी हैं। इसमें साक्षात्कारकर्ता उत्तरदाता की वास्तविक स्थिति से अनभिज्ञ रहता है। वह उसके चेहरे के भावों, वेश भूषा आदि का भी पता नहीं लगा सकता जबकि कई बार कुछ शोध उद्देश्यों में इन सभी का एक विशेष महत्व होता है। इस माध्यम में उत्तरदाता द्वारा दी गई जानकारी के पक्षपातपूर्ण होने की संभावना अधिक होती है।

 

3. कम्यूटर की सहायता से साक्षात्कार (Computer Assisted Interview):  ऐसे साक्षात्कार कंप्यूटर के माध्यम से लिए जाते हैं। इसमें कंप्यूटर द्वारा उत्तरदाता से प्रश्न पूछे जाते हैं और उत्तरदाता उनके उत्तर टाइपिंग के द्वारा देता है। उत्तरदाता के पिछले अथवा पहले उत्तर के आधार पर कम्प्यूटर अगले प्रश्न पूछता है। इस प्रकार उत्तरदाता के पहले दिए गए उत्तरों के आधार पर कम्प्यूटर आगामी प्रश्नों की स्वत: ही छंटनी प्रारम्भ कर देता है। इस प्रकार के साक्षात्कार को Computer-Assisted Personal Interviewing (कम्प्यूटर से सहायता प्राप्त व्यक्तिगत साक्षात्कार (CAPI) कहा जाता है। चूंकि इसमें कम्प्यूटर एक साक्षात्कारकर्ता की तरह कार्य कर्ता है और प्रश्नों को तर्कपूर्ण रीति से छांटता है इसलिए इसे प्रश्नावली की श्रेणी में नहीं रखा जाता। ऐसा साक्षात्कार शुद्धता (accuracy) की दृष्टि से उत्तम होता है परंतु साक्षात्कार का कंप्यूटर कार्यक्रम बनाने के लिए तकनीकी रूप से दक्ष व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। जिसमें काफी धन खर्च होता है।

 

IV  सूचना संग्रहित करने के आधार पर

 

1. याद्दाशत पर आधारित साक्षात्कार:  ऐसे साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता सूचना दर्ज करने के लिए पृष्ठ, अनुसूची या प्रश्नावली आदि का उपयोग नहीं करता वह याद रखता है कि उसे कितने लोगों ने क्या कहा। हालांकि शोध की दृष्टि से आंकड़ों को सहेजने का यह बहुत अच्छा ढंग नहीं है। ऐसा साक्षात्कार केवल उसी समय संभव है जब उत्तरदाताओं की संख्या बहुत कम हो या उनसे केवल एक या दो पूछे जाने हों या बहुत संक्षिप्त में उनसे किसी विषय पर राय लेनी हो।

 

2. पृष्ठ पर दर्ज किए जाने वाले साक्षात्कार: साक्षात्कार में सूचना संग्रहीत करने का यह सबसे प्रचलित ढंग है। इसमें साक्षात्कार करता साक्षात्कार निर्देशिका या यदि सौ प्रतिशत असंरचित अथवा गैरनिर्देशात्मक साक्षात्कार है तो कुछ खाली पृष्ठ अपने पास रखता है। साक्षात्कार के दौरान वह निर्देशिका पर या खाली पृष्ठों पर उत्तरदाता द्वारा दी हुई सूचना दर्ज करता जाता है।

 

3. दृश्य – श्रव्य उपकरणों (Audio-Visual Aids) वाले साक्षात्कार: साक्षात्कार में कई बार दृश्य – श्रव्य उपकरण बहुत लाभकारी सिद्ध होते हैं। जब साक्षात्कारकर्ता खुलकर किसी व्यक्ति का साक्षात्कार करना चाहता है और उसके द्वारा दी गई जानकारी को बार बार लिखने के झंझट से बचना चाहता है तो वह अक्सर इन उपकरणों का प्रयोग करता है। ऐसे उपकरणों का प्रयोग अक्सर वहाँ उचित रहता है जहाँ प्रतिचयन (sample) का आकार छोटा हो, अथवा प्रतिष्ठित व्यक्तियों का साक्षात्कार किया जा रहा हो। साक्षात्कार के बाद साक्षात्कारकर्ता दृश्य-श्रव्य उपकरणों से देखकर एवं सुनकर अपने शोध उद्देश्य के आधार पर जानकारी को अपने उपयोग के अनुसार समेकित पट (consolidate sheet) पर दर्ज कर सकता है।  

 

अपनी प्रगति जाँचिए

5. कम्प्यूटर आधारित साक्षात्कार से आप क्या समझते हैं।

6. व्यक्तिगत एवं टेलीफोन साक्षात्कार में क्या अंतर है।

7. सूचना दर्ज करने पर आधारित साक्षात्कार के कौन कौन से माध्यम हैं।

8. दृश्य श्रव्य उपकरणों (Audio-Visual Aids) वाले साक्षात्कार का क्या लाभ है

 

 
 

 

 

 

 

 

 

 

 


6.7 गौण आँकड़ों का एकत्रीकरण:

 

गौण आँकड़ों के एकत्रीकरण के लिए किसी सर्वेक्षण की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि ये आंकड़ें पहले से ही एकत्रित किए गए होते हैं। गौण आँकड़ों के मुख्यत: तीन स्रोत है:

6.7.1 व्यक्तिगत स्रोत: व्यक्तिगत स्त्रोत से अभिप्राय किसी व्यक्ति के अपना निजी दस्तावेज़ से है। इसे निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है:

अ) डायरी: बहुत से व्यक्ति अपनी रोज़मर्रा की घटनाएँ, अन्य जानकारी, पसंद, नापसंद उपलब्धियां आदि लिख कर रखते हैं। जिसे हम उनकी डायरी कहते हैं। डायरी में लिखी गई जानकारी पक्षपात रहित मानी जा सकती हैं। परंतु शोधकर्ता द्वारा किसी की भी डायरी प्राप्त करना एक बहुत ही दुरूह विषय है।

ब) आत्मकथा: आत्मकथाएँ अक्सर प्रकाशित होती हैं। एक व्यक्ति स्वयं भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है एवं कोई अन्य व्यक्ति भी किसी की आत्मकथा लिख सकता है।

स) संस्मरण: संस्मरण डायरी से भिन्न होते हैं। डायरी में रोज़मर्रा की चीजें दर्ज की जाती हैं, परंतु संस्मरणों में केवल विशेष घटनाओं को ही दर्ज किया जाता है। शोधकर्ता इनसे यह पता लगा सकता है कि किसी व्यक्ति का उसके जीवन में घटी महत्वपूर्ण घननाओं के प्रति क्या दृष्टिकोण है।

6.7.2. संस्थान के आंतरिक स्रोत: ये वे प्रकाशित या अप्रकाशित प्रलेख हैं जो एक संस्थान के भीतर ही प्रसारित होते हैं। इन प्रलेखों को केवल एक संस्थान के कर्मचारी ही देख-पढ़ सकते हैं। बाहर के व्यक्तियों को अक्सर बिना अनुमति के ये प्रलेख नहीं मिलते। उदाहरणत: किसी कंपनी के सेवावर्गीय नीतियाँ, विपणन रानीतियाँ आदि। ऐसे प्रलेख शोध कर्ता के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। जैसे विज्ञापन विषय पर शोध करने वाले व्यक्ति के लिए यह जानना अत्यंत लाभकारी  होगा कि अमुक कंपनी विज्ञापन का बजट किस विधि के आधार पर निर्धारित करती है। यह आंतरिक जानकारी है। शोध ऐसे सूचनाएँ उस संस्थान में अनुरोध करके प्राप्त कर सकता है कई बार शोध के परिणामों में संस्थानों का नाम छिपा दिया जाता है क्योंकि वे आंकड़ें तो देते हैं परंतु अपने नाम को प्रकाशित करने से माना करते हैं।

6.7.3 सार्वजनिक स्रोत: सार्वजनिक प्रलेख वे प्रलेख हैं जो सरकारी विभागों, बैंकों, केन्द्रीय बैंक, भारत सरकार के उपक्रमों, विभिन्न मंत्रालयों, सार्वजनिक एवं निजी कंपनियों द्वारा प्रकाशित अथवा अप्रकाशित रूप में हर किसी के लिए उपलब्ध रखे जाते हैं। सार्वजनिक प्रलेखों को दो आधारों पर कुल चार भागों में बांटा जा सकता है:

1. प्रकाशन के आधार पर:

 

अ) प्रकाशित प्रलेख: प्रकाशित प्रलेख वे प्रलेख हैं जो उपर्युक्त वर्णित संस्थाओं द्वारा प्रकाशित किए जाते हैं। और जिनके प्रकाशन की पुनरावृत्ति एक विशेष समय अंतराल पर होती है। हालांकि यह सभी प्रकार के प्रकाशित प्रलेखों के लिए आवश्यक नहीं होता। ये प्रलेख सरकारी एवं विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के पुस्तकालयों में उपलब्ध होते हैं। आज के तकनीकी युग में ये प्रलेख सभी सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थानों की वेबसाइटों पर अवश्य प्रकाशित किए जाते हैं। इससे एक शोधकर्ता द्वारा इनको प्रप्त करना और भी सरल हो जाता है। प्रकाशित प्रलेखों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:

 

  1. भारत सरकार द्वारा प्रकाशित गज़ट
  2. भारत सरकार, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित आंकड़ें।
  3. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों के आंकड़ों का प्रकाशन
  4. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज एवं नेशनल स्टॉक एक्चेंज द्वारा शेयर बाजार के आंकड़ों का प्रकाशन
  5. सार्वजनिक कंपनियों द्वारा अपनी चिट्ठे एवं लाभ हानि खाते के रूप में अपनी आर्थिक स्थिति का प्रकाशन
  6. निजी/ सार्वजनिक कंपनियों द्वारा अपनी वार्षिक रिपोर्ट का प्रकाशन
  7. गैर सरकारी संस्थानों द्वारा विभिन्न सामाजिक विषयों पर आंकड़ों का प्रकाशन
  8. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा भंडार द्वारा अनेक पुस्तकों एवं वार्षिक रिपोर्ट का प्रकाशन
  9. विश्व बैंक द्वारा “विश्व विकास रिपोर्ट का प्रकाशन” “World Development report” एवं अन्य महत्वपूर्ण प्रलेखों का प्रकाशन।
  10. विश्व व्यापार संगठन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आंकड़ें, वार्षिक रिपोर्ट एवं विश्व व्यापार रिपोर्ट का प्रकाशन  इत्यादि

 

ब) अप्रकाशित प्रलेख: बहुत से गौण आंकड़ें ऐसे होते हैं जिन्हे एक रिपोर्ट के रूप मे प्रकाशित नहीं किया जाता परंतु इन आंकड़ों को अनुरोध पर प्रप्त किया जा सकता है। कई शोधकर्ता सूचना के अधिकार (Right to Information) के माध्यम से ऐसे आंकड़ों को प्रप्त करते हैं। विश्वविद्यालयों के शोध ग्रंथ जो अक्सर उनके पुस्तकालयों में रखे होते हैं वे भी अप्रकाशित प्रलेखों की श्रेणी में आते हैं। ये प्रलेख सार्वजनिक तो होते हैं परंतु इनका प्रकाशन नहीं होता।

 

2. प्रबंधन के आधार पर

 

अ) विशेष रूप से प्रबंधित किए गए आंकड़ाकोश: विशेष रूप से प्रबंधित आंकड़ाकोश अक्सर शोधकर्ताओं की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किए जाते हैं। ऐसे  आंकड़ाकोश मूलत: निजी संस्थानों द्वारा प्रबंधित किए जाते हैं। इन आंकड़ाकोशों से आंकड़ें शुल्क देकर प्रप्त किए जाते हैं। ऐसे आंकड़कोशों की सदस्यता अक्सर बड़े बड़े पुस्तकालयों द्वारा ली जाती है। बहुत सी सलहकार एजेंसियां भी व्यावसायिक उद्देश्यों से इस प्रकार के आंकड़कोशों का निर्माण करती हैं।

 

ब) सामान्य रूप से एकत्रित विभिन्न सरकारी / अथवा गैर सरकारी तंत्रों द्वारा एकत्रित आँकड़े: इस प्रकार के आंकड़ें अक्सर बिना किसी शुल्क के उपलब्ध होते हैं। ये आंकड़ें सरकारी अथवा गैर सरकारी तंत्रों द्वारा मुख्यत: अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एकत्रित किए जाते हैं इसलिए कई बार वर्तमान शोध समस्या के लिए अपूर्ण होते हैं। इनके उदाहरणों की व्याख्या प्रकाशित आंकड़ों के बिन्दु में की गई है।

 

6.8 गौण आंकड़ों के चयन की प्रक्रिया:

वर्तमान शोध समस्या के लिए एक शोधकर्ता द्वारा गौण आँकड़ों का प्रयोग बहुत ही सावधानी से किया जाना चाहिए। गौण आँकड़ों के सही चयन एवं सटीक प्रयोग के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए:

 

 

 

 

 

 

 

 

6.9 गौण आंकड़ों के प्रयोग में सावधानियाँ:

1. केवल विश्वसनीय आंकड़ाकोश का प्रयोग करें: गौण आंकड़ों का प्रयोग करते समय एक शोधकर्ता  को केवल लोकप्रिय एवं विश्वसनीय आंकड़कोश का ही प्रयोग करना चाहिए। सरकारी एवं स्वायत्त संस्थानों के आँकड़ाकोश अक्सर अधिक विश्वसनीय माने जाते हैं।

2. अपूर्ण आँकड़ों का ध्यान रखें: गौण आँकड़ों में कई बार कुछ समय की या कुछ जानकारी गायब होती है। इस प्रकार की जानकारी को या तो शोधकर्ता को किसी अन्य स्रोत की सहायता से पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए अथवा शोध परिणामों में इस बात का विशेष उल्लेख करना चाहिए कि किस स्तर की एवं किस प्रकार की जानकारी अपूर्ण है।

3. पक्षपात के लिए परीक्षण: कुछ सांख्यिकीय विधियाँ ऐसी हैं जिनसे आँकड़ों के पक्षपात की जांच की जा सकती है। गौण आँकड़ों का प्रयोग करते समय एक शोधकर्ता को इस प्रकार की जाँच करने के बाद ही आगे बढ़ना चाहिए।

4. उद्देश्य के अनुरूप आँकड़ों का सम्पादन: गौण आँकड़ों का शोध उद्देश्यों के अनुरूप सम्पादन अति आवश्यक है कई बार आँकड़ों की कुछ श्रेणियों को आपस में मिलाना पड़ता है तो कई बार उन्हे अलग करना पड़ता है। इसलिए उद्देश्य के अनुरूप सम्पादन ही गौण आँकड़ों को उपयोग के योग्य बनाता है।

6.10 सारांश:

प्रधान एवं गौण दोनों ही प्रकार के आंकडों का शोध में बहुत महत्व है। एक सम्पूर्ण शोध के लिए शोध कर्ता किस भी शोध समस्या की पूर्ति के लिए कभी भी केवल एक ही प्रकार के आंकड़ों का प्रयोग नहीं करता। वह प्रधान एवं गौण दोनों प्रकार के आंकड़ों के एक तर्कसंगत मिश्रण प्रयोग करता है। प्रधान आंकड़ों के एकत्रीकरण के लिए प्रश्नावली, अनुसूची, अवलोकन/निरीक्षण एवं साक्षात्कार आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है। जबकि गौण आंकड़ों का एकत्रीकरण विभिन्न प्रकाशित/ अप्रकाशित स्रोतों का प्रयोग किया जाता है। प्रधान आंकड़ें जहां मौलिक एवं शोध उद्देश्यों के अनुरूप होते हैं वहीं इनके संकलन में बहुत अधिक समय एवं धन खर्च होता है। गौण आंकड़ों के संकलन में समय एवं धन तो कम खर्च होता है परंतु इन्हे शोध उद्देश्य के अनुरूप बनाने के लिए इनका सम्पादन आवश्यक है।

6.11 मुख्य शब्दावली

·        प्रधान आंकड़े (primary data): प्रधान आंकड़े वे आंकड़े हैं जिन्हे एक शोधकर्ता पहली बार अपने ही शोध के उद्देश्य के लिए एकत्रित करता है।

·        गौण आंकड़ें (secondary data): गौण आंकड़े वे आंकड़े हैं जिन्हे शोध कर्ता किसी अन्य स्रोत कसे प्राप्त कर्ता है

·        भारी प्रश्न (loading questions) भारी प्रश्न वे प्रश्न हैं जिनका उत्तर देने के लिए शोध करता को बहुत समय एवं प्रयास लगाना पड़ता है और काफी गणना करनी पड़ती है।

·        अवलोकन विधि (Observation Method): इस विधि में शोधकर्ता किसी भी व्यक्ति या घटना को देखकर आंकड़े एकत्रित करता है।

·        साक्षात्कार (interview) : जिसमें शोधकर्ता या शोध दल का कोई एक सदस्य साक्षात्कारकर्ता के रूप में उत्तरदाता से आमने-सामने मुलाक़ात के माध्यम से जानकारी एकत्रित करता है।

·        व्यक्तिगत साक्षात्कार (Personal Interview): व्यक्तिगत साक्षात्कार साक्षातकारकर्ता एवं उत्तरदाता का आमने-सामने मिलन है। इसमें साक्षात्कारकर्ता उत्तरदाता से स्वयं मिलकर सूचना एकत्रित करता है।

·        प्रकाशित प्रलेख: प्रकाशित प्रलेख वे प्रलेख हैं जो सरकारी अथवा गैर सरकारी स्थाओं द्वारा प्रकाशित किए जाते हैं।

6.12 अपनी प्रगति जाँचिए के उत्तर

1.     प्रधान आंकड़े वे आंकड़े हैं जिन्हे एक शोधकर्ता पहली बार अपने ही शोध के उद्देश्य के लिए एकत्रित करता है। ये आंकड़े शोध कर्ता के लिए एकदम ताजा आंकड़े होते हैं, क्योंकि ये स्वयं शोधकर्ता द्वारा स्वयं अपने      लिए एकत्रित किए जाते हैं। गौण आंकड़े वे आंकड़े हैं जिन्हे शोध कर्ता किसी अन्य स्रोत कसे प्राप्त कर्ता है     जैसे- बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज एकत्रित शेयरों के लिए एकत्रित किए गए आंकड़ें, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा एकत्रित किए गए बैंकों के आंकड़ें, अन्य सरकारी विभागों द्वारा एकत्रित एवं प्रकाशित आंकड़े इत्यादि।

2.     अधिक समय एवं धन की आवश्यकता प्रशिक्षण की आवश्यकता तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता उत्तर देने वाले की अरुचि गलत सूचना

3.     अनुसूची भी प्रश्नावली की तरह ही प्रश्नों की एक सारणी है। प्रश्नावली व अनुसूची में आधारभूत अंतर यह है कि प्रश्नावली में प्रश्नों के उत्तर स्वयं उत्तरदायी भरता है परंतु अनुसूची में यह कार्य शोधकर्ता करता    है।

4.     मिश्रित प्रश्नावली में बंद, खुले एवं चित्रात्मक सभी प्रकार के प्रश्न हो सकते हैं। अक्सर मिश्रित प्रश्नावली में अधिकांशत: प्रश्न बंद एवं खुले प्रश्न होते हैं।

5.     ऐसे साक्षात्कार कंप्यूटर के माध्यम से लिए जाते हैं। इसमें कंप्यूटर द्वारा उत्तरदाता से प्रश्न पूछे जाते हैं और उत्तरदाता उनके उत्तर टाइपिंग के द्वारा देता है। उत्तरदाता के पिछले अथवा पहले उत्तर के आधार     पर कम्प्यूटर अगले प्रश्न पूछता है।

6.     व्यक्तिगत साक्षात्कार साक्षातकारकर्ता एवं उत्तरदाता का आमने-सामने मिलन है। इसमें साक्षात्कारकर्ता    उत्तरदाता से स्वयं मिलकर सूचना एकत्रित करता है। दूरभाष से साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता दूरभाष       (telephone) के माध्यम से उत्तरदाता का साक्षात्कार लेता है।

 

7.     याददाश्त पर आधारित साक्षात्कार, पृष्ठ पर दर्ज किए जाने वाले साक्षात्कार, दृश्य श्रव्य उपकरणों वाले   साक्षात्कार

8.     जब साक्षात्कारकर्ता खुलकर किसी व्यक्ति का साक्षात्कार करना चाहता है और उसके द्वारा दी गई        जानकारी को बार बार लिखने के झंझट से बचना चाहता है तो वह अक्सर दृश्य श्रव्य उपकरणों का प्रयोग     करता है। इस माध्यम में उत्तरदाता द्वारा दी गई सूचना दृश्य श्रव्य उपकरणों में दर्ज की जाती है।  

 

6.13 अभ्यास हेतु प्रश्न

लघु उत्तर प्रश्न

1. अवलोकन विधि से आप क्या समझते हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट करें।

2. कंप्यूटर से सहायता प्राप्त साक्षात्कार से क्या अभिप्राय है?

3. गौण आंकड़ों की मुख्य कमियाँ क्या है।

4. प्रधान आंकड़ों के मुख्य लाभ क्या हैं।

 

दीर्घ उत्तर प्रश्न

1. प्रधान एवं गौण आंकड़ों में दस अंतर स्पष्ट करें?

2. प्रश्नावली एवं अवलोकन विधि में अंतर स्पष्ट करें।

3. साक्षात्कार के स्थान के आधार पर साक्षात्कार के विभिन्न प्रकारों की व्याख्या करें।

4. गौण आंकड़ों के मुख्य स्रोत कौन कौन से हैं? विस्तार से व्याख्या कीजिए।

6.14 आप यह भी पढ़ सकते हैं

  1. Kothari, C. R., Research Methodology: Methods and Techniques, New Delhi, New Age International Publishers: 2004
  2. Baryaman, A., and Bell Emma, Business Research Methods, New York, Oxford University Press: 2007.
  3. Murthy, C., Research Methodology, New Delhi, Vrindra Publications (P) Ltd.: 2009.
  4. Tripathi, P. C., Research Methodology in Social Sciences, New Delhi, Sultan Chand & Sons: 2007.
  5. Chawla, D., Sondhi, N., Research Methodology: Concepts and Cases, New Delhi, Vikas Publishing House Pvt. Ltd.
  6. Krishnaswami, O. R., Methodology of Research in Social Sciences, New Delhi, Himalaya Publishing House: 2002
  7. Bhattacharyya, D. K., Research Methodology, New Delhi, 2006, Excel Books, New Delhi.

 

 

 

 

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